छत वाले कमरे में अभी पुताई का काम बचा है। एक बार वो हो जाए तो माँ को उनके नए घर में ले आऊंगा। उससे पहले वकील साहब से इस मकान के सारे कागजात लेने हैं। कौन कहता है ज़िन्दगी में मोआज़्ज़े नहीं होते,कहाँ कल तक सर पे छत होने की एक मिनट की गारेंटी नहीं थी और आज एक मिनट में ये तीन BHK का मकान मेरा घर बन जायेगा।
लो, बाहर बारिश होने लगी। मुझे बारिश कभी पसंद नहीं थी, बचपन में हर बरसात के मौसम में छत से सारी रात टप टप पानी की बूंदे गिरती रहती थी और मुझे सूखे हिस्से में सुला कर माँ खुद हमारी भीगी सी किस्मत की तरह रात भर परेशान रहती। अक्सर लोगों को कहते सुना है की काश वो बचपन के दिन वापस आ जाते। पर मुझे आज पीछे पलट के देखने पे न तो मासूम कागज की कश्तियाँ याद आती हैं न ही बेफिक्र पतंगबाजी , याद आता है तो बस आपनी माँ को हर वक़्त जी तोड़ मेहनत करते देखना जिससे वो मुझे हर मुनासिब खुशी दे सके। टीन के बने उस छोटे से कमरे में जहां सूरज की किरणें भी भीतर जाने से कतराती थी मैं रोज़ ज़िन्दगी को दरवाजे के बाहर से गुजरते देखता था पर कमरे में चाहे जितना भी अँधेरा हो, अपनी माँ की आँखों में मैंने हमेशा एक उम्मीद का नूर देखा था। मेरे सुनहरे भविष्य की उम्मीद, तभी शायद एक एक पैसा जोड़ के उसने ग्यारवीं में मुझे boarding स्कूल भेज दिया। उससे अलग रहने के ख्याल से भी मुझे डर लगता था पर उसकी आँखों में देखी उस उम्मीद की खातिर मैंने सामान बांधा और उस नए से रास्ते पे निकल पड़ा। वैसे तो ज़िन्दगी ने मुझे ऐसे बहुत सारी यादें दी हैं जिन्हें मैं कभी याद नही करना चाहता पर मेरे दिमाग में एक ऐसी तस्वीर है जो मैं चाह कर भी भूल नहीं पाता । मेरे दाखिले के लिए माँ ने हर किसी के सामने हाथ फैला दिए। कहीं से जोड़ तोड़ के वो मुझे बस इस अँधेरी दुनिया से दूर भेज देना चाहती थी । जैसे तैसे मैंने उससे अलग होकर जीना सीख तो लिया पर अपनी माँ की उन लाचार आँखों को एक पल के लिये भी मैं भुला न पाया।
स्कूल के बाद मुझे एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन मिल गया। मुझे लगा अपने माँ के सपने को पूरा करने की तरफ मैंने अपना पहला कदम लिया है पर फिर मुझे एहसास हुआ की मेरी सफलता भी उसके पाँव की बेड़ियाँ बन गयी थी । मुझे मिली स्कालरशिप के बावजूद कॉलेज की फीस लगभग एक लाख रुपये सालाना पड़ रही थी | इतनी बड़ी रकम दे पाना हमारे लिए नामुमकिन था | एक बार फिर मेरी वजह से मेरी माँ को लाचारी का सामना करना पड़ा | बैंक के कई व्यर्थ चक्कर काटने के बाद उसने वो किया जिसने मुझे अंदर तक झकझोर दिया । मेरे लिए एक मुट्ठी आसमान की चाहत में उसने हमारी मुट्ठी भर ज़मीन बेच दी |
"कॉलेज के दिन" ये तीन शब्द शायद हर किसी के दिमाग पे उनकी ज़िन्दगी के सबसे खूबसूरत दिनों की तस्वीर ले आते हैं पर मेरे लिए वो हर एक दिन मेरी माँ की मुस्कान के लिए लिया गया एक क़र्ज़ था जो मैं हर रोज़ अपनी चाहतों का गला घोंट के चुका रहा था । कीमती कपड़ों और दोस्तों के साथ घूमना फिरना तो मेरी फितरत में था ही नहीं। बस किसी तरह भीड़ में खुद को छुपा कर ये चार साल काट दिए |
अरे लो बारिश भी बंद हो गयी । ये अतीत भी न क्या चीज है इतने पहले बीत चुका है पर हर आज में कभी भी अचानक से अपने होने का एहसास दिला जाता है पर किसी ने सच ही कहा है कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती। अब मेरा उस कल से कोई लेना देना नहीं है। उन चार सालों की जी तोड़ मेहनत ने मेरे लिए माँ के देखे हर सपने को पाने का रास्ता खोल दिया । लास्ट ईयर प्लेसमेंट्स के समय मेरी सोई हुई किस्मत ने करवट ले ही लिया और मेरी नौकरी एक बहुत अच्छी कंपनी में लग गयी । आज अपनी माँ को इस घर की चाभियाँ देकर उसकी आँखों में वो ख़ुशी देखना चाहता हूँ जिसकी एक झलक पाने के लिए मैं अब तक तरसता रहा हूँ । ये एक बहुत लंबा रास्ता है जो मैं उस एक झलक को पाने के लिए तय किया है, इस रास्ते पे कभी पीछे मुड़ के देखना भी नहीं चाहता।
लो, बाहर बारिश होने लगी। मुझे बारिश कभी पसंद नहीं थी, बचपन में हर बरसात के मौसम में छत से सारी रात टप टप पानी की बूंदे गिरती रहती थी और मुझे सूखे हिस्से में सुला कर माँ खुद हमारी भीगी सी किस्मत की तरह रात भर परेशान रहती। अक्सर लोगों को कहते सुना है की काश वो बचपन के दिन वापस आ जाते। पर मुझे आज पीछे पलट के देखने पे न तो मासूम कागज की कश्तियाँ याद आती हैं न ही बेफिक्र पतंगबाजी , याद आता है तो बस आपनी माँ को हर वक़्त जी तोड़ मेहनत करते देखना जिससे वो मुझे हर मुनासिब खुशी दे सके। टीन के बने उस छोटे से कमरे में जहां सूरज की किरणें भी भीतर जाने से कतराती थी मैं रोज़ ज़िन्दगी को दरवाजे के बाहर से गुजरते देखता था पर कमरे में चाहे जितना भी अँधेरा हो, अपनी माँ की आँखों में मैंने हमेशा एक उम्मीद का नूर देखा था। मेरे सुनहरे भविष्य की उम्मीद, तभी शायद एक एक पैसा जोड़ के उसने ग्यारवीं में मुझे boarding स्कूल भेज दिया। उससे अलग रहने के ख्याल से भी मुझे डर लगता था पर उसकी आँखों में देखी उस उम्मीद की खातिर मैंने सामान बांधा और उस नए से रास्ते पे निकल पड़ा। वैसे तो ज़िन्दगी ने मुझे ऐसे बहुत सारी यादें दी हैं जिन्हें मैं कभी याद नही करना चाहता पर मेरे दिमाग में एक ऐसी तस्वीर है जो मैं चाह कर भी भूल नहीं पाता । मेरे दाखिले के लिए माँ ने हर किसी के सामने हाथ फैला दिए। कहीं से जोड़ तोड़ के वो मुझे बस इस अँधेरी दुनिया से दूर भेज देना चाहती थी । जैसे तैसे मैंने उससे अलग होकर जीना सीख तो लिया पर अपनी माँ की उन लाचार आँखों को एक पल के लिये भी मैं भुला न पाया।
स्कूल के बाद मुझे एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन मिल गया। मुझे लगा अपने माँ के सपने को पूरा करने की तरफ मैंने अपना पहला कदम लिया है पर फिर मुझे एहसास हुआ की मेरी सफलता भी उसके पाँव की बेड़ियाँ बन गयी थी । मुझे मिली स्कालरशिप के बावजूद कॉलेज की फीस लगभग एक लाख रुपये सालाना पड़ रही थी | इतनी बड़ी रकम दे पाना हमारे लिए नामुमकिन था | एक बार फिर मेरी वजह से मेरी माँ को लाचारी का सामना करना पड़ा | बैंक के कई व्यर्थ चक्कर काटने के बाद उसने वो किया जिसने मुझे अंदर तक झकझोर दिया । मेरे लिए एक मुट्ठी आसमान की चाहत में उसने हमारी मुट्ठी भर ज़मीन बेच दी |
"कॉलेज के दिन" ये तीन शब्द शायद हर किसी के दिमाग पे उनकी ज़िन्दगी के सबसे खूबसूरत दिनों की तस्वीर ले आते हैं पर मेरे लिए वो हर एक दिन मेरी माँ की मुस्कान के लिए लिया गया एक क़र्ज़ था जो मैं हर रोज़ अपनी चाहतों का गला घोंट के चुका रहा था । कीमती कपड़ों और दोस्तों के साथ घूमना फिरना तो मेरी फितरत में था ही नहीं। बस किसी तरह भीड़ में खुद को छुपा कर ये चार साल काट दिए |
अरे लो बारिश भी बंद हो गयी । ये अतीत भी न क्या चीज है इतने पहले बीत चुका है पर हर आज में कभी भी अचानक से अपने होने का एहसास दिला जाता है पर किसी ने सच ही कहा है कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती। अब मेरा उस कल से कोई लेना देना नहीं है। उन चार सालों की जी तोड़ मेहनत ने मेरे लिए माँ के देखे हर सपने को पाने का रास्ता खोल दिया । लास्ट ईयर प्लेसमेंट्स के समय मेरी सोई हुई किस्मत ने करवट ले ही लिया और मेरी नौकरी एक बहुत अच्छी कंपनी में लग गयी । आज अपनी माँ को इस घर की चाभियाँ देकर उसकी आँखों में वो ख़ुशी देखना चाहता हूँ जिसकी एक झलक पाने के लिए मैं अब तक तरसता रहा हूँ । ये एक बहुत लंबा रास्ता है जो मैं उस एक झलक को पाने के लिए तय किया है, इस रास्ते पे कभी पीछे मुड़ के देखना भी नहीं चाहता।
हर वक़्त ये ज़िन्दगी कुछ न कुछ सिखाती रही
कभी आँखें मूँद के जाने दिया कभी हाथ थाम के चलाती रही
जब रास्ते धुंधला गए तो रक़ीब् बन गयी
कभी एक सवाल बन गयी कभी बस नसीब बन गयी
हम इसको सुलझाने चले, ये हमको सुलझाती रही
हर वक़्त ये ज़िन्दगी कुछ न कुछ सिखाती रही
PS: This was a post requested for dedication by a friend.