Friday 18 July 2014

कुछ तो है जो हम पीछे छोड़ आये हैं !

रोज़ लेकर पाइप घंटों बगीचे से बतियाते थे
लेकर अखबार सवेरे सवेरे दुनिया घूम आते थे
फटाफट हेडलाइंस से ही आज काम चलाते हैं
एक मग्गा पानी गमले में डाल आते हैं |

कागज पे स्याही से हाल चाल बताते थे
लाल रंग के पोस्ट बॉक्स में चिट्ठी डाल आते थे
संदूक में एक कोना यादों का बनाते थे
रिश्तों की कीमत तो अब मोबाइल बैलेंस से बताते हैं
क्या करें आज-कल
तार और नेटवर्क में उलझे रह जाते हैं |

सजी थाल में प्यार डाल कर
पडोसी को खिलाते थे
दीवाली व न्यू ईयर पे ग्रीटिंग कार्ड भिजवाते थे
ऑनलाइन ही अब मुँह मीठा हो जाता है
दो सौ पैंसठ कैरक्टर्स में अब सब सिमट जाता है |