Sunday 4 August 2013

वही पुराना स्विच बोर्ड

पहले दिन जब हम ट्रेनिंग के लिए दूरदर्शन भवन पहुचे तो सरकारी कार्यालय के सोते हुए सिस्टम ने हमारा स्वागत किया और पूरा एक घंटा सेमिनार हॉल में व्यर्थ बैठने के बाद हमे ज्ञात हुआ कि हमारी सारी उत्साहिकता पे बड़े ही प्यार से पानी नहीं चाय फेर दिया गया था | इतने लम्बे इंतज़ार के बाद कहीं जाकर एक महोदय आये और उन्होंने आधे घंटे का लेक्चर दिया जिसका एक अक्षर भी हमारे पल्ले न पड़ा क्यूँकि उन्हें ये भी नहीं पता था की सामने बैठा बैच कौन सा है |खैर लंच ब्रेक हुआ तो हमने कैंटीन की तरफ रुख किया | बाहर से एक मामूली सी कैंटीन दिखने वाला उस भवन का वो कोना बाद में हमारा ट्रेनिंग पे आने का soul reason बन जायेगा ये तो हमे पता ही नहीं था, भीतर जाकर जब हमारी नज़र रेट लिस्ट पे पड़ी तो हमारी आँखें खुली की खुली रह गयी, मात्र दस रुपये में लजीज आलू के परांठे, सात रुपये में CCD की कॉफ़ी, २० रुपये में मसाला डोसा इत्यादि | एक बार फिर हम हर्षोल्लास से भर गए | कम पैसों में भर पेट खाना खा कर इतनी ख़ुशी हुई तो हमे लगा ज़रा अपने दोस्तों को भी इस बात से अवगत किया जाए. धडाधड़  whatsapp का प्रयोग किया गया. रेट लिस्ट की फोटो भेज कर हम ऐसे प्रसंचित्त थे जैसे हमारी वहां नौकरी लग गयी हो. फिर तो हर निर्धारित दिन पर कार्यालय जाकर पहले जितना ज्ञान समेट पाते समेटते और फिर पहुच जाते थे कैंटीन| एक दिन हमे पता चला कि भवन के दूसरे तल पर भी एक mini canteen है.हम ऐसे कैसे किसी भी खजाने को हाथ जाने देते तो अगले ही दिन हम वहां भी पहुच गए | पता चला की यहाँ तो ज्यादा अच्छी कॉफ़ी मिलती है, फिर हमारा अड्डा ज़रा शिफ्ट हो गया | उस मिनी कैंटीन में काम करने वाले भैया काफी मिलनसार हैं| एक रोज़ यूँ ही वो हमे कुछ रेगुलर कस्टमर के बारे में बताने लगे, हम भी बातूनी कम कहाँ हैं हमने उनकी बातों में रूचि ली तो वो और खुल कर बातें करने लगे और बातों बातों में हमने पूछा कि आप यहाँ कब से काम कर रहे हो ? 
" पांच साल हो गए हैं .जब मैंने यहाँ काम शुरू किया था तो आधे से ज्यादा कमरे और फ्लोर खाली थे तब DD NEWS नहीं था इनके पास. फिर धीरे धीरे सरकार ने और पैसा लगाया और लोग बढ़ते गए. हर फ्लोर के हर कमरे में रूम डिलीवरी करता हूँ. यहाँ कोई ऐसा नहीं होगा जो मुझे ना जानता हो | दिन भर में हर कमरे में चक्कर लग जाते हैं| अब तो इन के साथ काम करके इनके जैसा ही हो गया हूँ| जब नया नया आया था तो बहुत परेशान हुआ था, लगता था इनके पास पर power है इसलिए डरता था पर अब पता चल गया है कोई power नहीं है इनके पास| अब अपनी मर्ज़ी से काम करता हूँ| एक साहब ने आधे घंटे पहले कॉफ़ी मंगायी थी अब तक नहीं ले गया, बैठे होंगे वो इंतज़ार में."
ये बोल कर वो बड़ी ही बेबाकी से हँस दिया |
हम हैरान थे हमने कहा आप जाकर उन्हें कॉफ़ी दे आइये वरना...
हम अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि वो बोल उठा " वो मेरे काम में गोली देते हैं तो मैं उनके काम में गोली दूंगा. इनके हाथ में कुछ नहीं है, एक स्विच तो लगवा नहीं सकते ये | कितना बोला मैंने कि coffeemaker के लिए एक प्लग चाहिए पर सब को सिर्फ दुसरे पे काम टालना आता है. हर बड़े अफसर के अचानक से हाथ बंध जाते हैं और खुद को सबसे powerful कहने वाले अफसर को अचानक से ऊपर बैठे आला अफसरों की याद आ जाती है. मुझे कोई डर नहीं है इनका."
जिस तरह वो उन सारे बड़े अफसरों को "इनके" कह कर एक पल खुद से छोटा सिद्ध कर दे रहा था वो हमारे लिए आश्चर्यजनक था. कुछ देर पहले जो आदमी हमे रोज़ आने जाने वाले बच्चो के मजेदार किस्से सुना रहा था वो अब हमे अपनी आखों से देश का सिस्टम दिखा रहा था. 
एक बार जो उसने बोलना शुरू किया तो लगा जैसे सालों से एकत्रित किया सारा गुबार वो आज निकल कर ही मानेगा | फिर तो उसने कई ऐसे कच्चे चिट्ठे खोले | उसने हमे बताया कि कुछ साल पहले vacancy के नाम पे दो पोस्ट निकाले गए थे जिसके लिए डेढ़ लाख से भी ज्यादा फॉर्म आये थे पर उन बेचारे डेढ़ लाख भारतियों को कहाँ पता था कि उनके फॉर्म महज समोसे खाने के काम आये थे क्यूँकि जो दो vacancy निकली थी उनके वारिस तो पहले ही रोजाना उसी भवन में पार्टी कर रहे थे |
"मैंने तो फॉर्म भरने के बारे में सोचा भी नहीं क्यूँकि मुझे पता था कि कंप्यूटर पे जिस तेज़ी से "number of applications " बढ़ रही हैं उतने ही ज्यादा इन अफसरों की शाम कि पार्टी का इंतज़ाम हो रहा है. मैं ही तो कॉफ़ी, चाय , सूप बना कर ले जाता था | मैं यहीं सही हूँ कम से कम सबको इमानदार coffee पिला कर ख़ुशी तो मिलती है ! इनके बीच इनके जैसा काम मुझसे ना हो पायेगा| "
इन सब हकीकतों से हम वाकिफ तो पहले भी थे पर इस तरह से कभी किसी को बोलते हुए नहीं देखा था | एक आम कॉफ़ी बनाने वाला हमे हमारे ही हाल से रूबरू करा रहा था. हमे कुछ बोलने कि ना तो ज़रुरत पड़ रही थी न ही वो हमे मौका दे रहा था. 
" फॉर्म तो मैंने भरा भी नहीं , भर भी देता तो कुछ ना होना था और वैसे भी हाई स्कूल फेल इंसान को कौन नौकरी देगा | पढाई तो मैंने तब छोड़ दी थी जब मेरे TC पे उन्होंने लिख दिया था 'फीस न जमा करने के कारण नाम काटा गया '| "
वो कुछ देर के लिए शांत हो गया |
हमे लगा शायद उसे इस बात का पछतावा है या शायद गम है कि गरीबी के कारण फीस न जमा कर पाया और पढाई अधूरी रह गयी|हम अपने मन में कुछ राय बना ही रहे थे कि वो दुबारा बोल पड़ा..
" अरेफीस ना पूरी दी होती तो क्या बोर्ड से मेरा परीक्षा पत्र आ जाता | वो तो तभी मिलता है जब कोई फीस बकाया ना हो. मैंने कहा उनसे कि मेरी फीस पूरी जमा है पर किसी ने मेरी एक ना सुनी. प्रधानाचार्य तक के पास गया कि सर ऐसा क्यूँ कर रहे हो पर उनके पास भी कोई जवाब नहीं था." 
उसकी आवाज में झल्लाहट साफ़ झलक रही थी, गुस्सा था पर पछतावा नहीं | 
" नवी क्लास में इतना होशियार था मैं पढने में very good था, हिंदी इतनी अच्छी थी कि सब तारीफ करते थे पर पता नहीं किस बात का बदला ले रहे थे| बस तभी मैंने पढाई छोड़ दी. कसम खा ली कि अब कभी नहीं पढूंगा"
हमसे रहा न गया और हमने बोला " पर भैया इससे नुक्सान तो आपका ही हुआ न जिसने ऐसा किया उससे तो कोई फर्क भी नहीं पड़ा. पढाई कितनी ज़रूरी है..."
और एक बार फिर उसने हमारी बात काट दी " उस TC को लेकर मैं जिस भी जगह जाता सबको यह लगता या तो ये कोई गुंडा बदमाश है जिसे स्कूल से निकाल दिया गया या फिर इतना गरीब है कि फीस नहीं दे पाया तो कॉलेज की फीस क्या भरेगा" विद्या का महत्व पता है मुझे, पर विद्या ने जब मुझे धोखा दे दिया तो अब मुझे दुबारा कोशिश नहीं करनी | यहीं ठीक हूँ मैं. यही हाल है UP का | आज भी वो कागज का टुकड़ा है मेरे पास जिसपे लिखा है ' फीस न जमा करने की वजह से नाम काटा गया ' , खून खौल उठता है उसे देख कर "
उसकी आवाज में दर्द था, आँखों में गुस्सा पर होंठों पे एक बेबाक सी मुस्कान |   
हम अब हर तरह से निरुत्तर हो चुके थे | गुनेहगार कौन था ये तो ना उसे पता था ना हमे, कोई "वो" था जिसने एक आम आदमी के भविष्य के साथ घिनोना मज़ाक किया था | उसने कोई जवाब नहीं माँगा था पर हम सवालों से घिर गए थे, उसकी बातों ने हमारे मन में इतने प्रश्न चिन्ह बना दिए थे कि हमसे कुछ बोला ही नहीं जा रहा था | तभी वहां कुछ कस्टमर्स आ गए और वो आदमी जिसने अभी अभी हमे अन्दर तक झकझोर दिया था, अपनी कुर्सी से उठा और आर्डर के अनुसार लेमन टी बनाने लगा. वही पुराने से स्विच बोर्ड का बटन ऑन करके वो अपनी ज़िन्दगी में वापस चला गया और हम बस "कल फिर आएंगे" कह कर वहां से चले गए.


~~ हमने ज़िन्दगी से न कीमती खजाने मांगे थे
ना बेवजह खुशियों के बहाने मांगे थे
रात हो तो चैन की नींद आ जाये जहाँ 
ले दे कर कुछ ऐसे ठिकाने मांगे थे  ~~